Tuesday, July 12, 2011

one day off

कभी लगती पुष्पों की सेज सी
कभी डगर काँटों की
कभी पेंग बढाते झूले सी ऐसी ही है जिंदगी |देखते ही देखते
यूं ही गुजर जाती है
कैसे करें भरोसा इस पर
कभी भी साथ छोड़ जाती है |
जो भी इसे समझ पाया
सामंजस्य स्थापित कर पाया
वही अपने हिसाब से
अपने तरीके से जी पाया |
जिसने इसे नहीं समझा
इसका मोल नहीं आंका

इसे भोग नहीं पाया
किसी ने बेवफा कहा इसे कुछ ने मुक्ति मार्ग का नाम दिया

जाने कितनों ने इसे उपकार कहा

प्रभु की अनमोल देन समझा |

वह भी ऐसी

जो जन्म के साथ मिली हो

फिर वह बेवफा कैसे हो

जिसमें वफा ही भरी हो |

संगी साथी सब छूट जाते हैं

कभी स्मृतियों में

खोते जाते है

कभी विस्मृत भी हो जाते हैं |

है जिंदगी ऐसा अनुभव

जो दौनों ही पाते हैं

कुछ याद रखते हैं

कई भूल जाते हैं

 




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