
Monday, November 7, 2011
Saturday, November 5, 2011
Wednesday, September 14, 2011
Sunday, July 17, 2011
a wonderful experience
I gave to Jemma silver anklets ( payal ) but they were too small to fit in her feet . still it was a wonderful experience as they did not see them before . This little girl was even afraid to put them in her feet . as she never wore anything on her legs any ornament . They were small but she did not even tried even grand mom showed her as she was wearing them . see the pictures which I sent you .
Tuesday, July 12, 2011
one day off
कभी लगती पुष्पों की सेज सी
कभी डगर काँटों की
कभी पेंग बढाते झूले सी ऐसी ही है जिंदगी |देखते ही देखते
यूं ही गुजर जाती है
कैसे करें भरोसा इस पर
कभी भी साथ छोड़ जाती है |
जो भी इसे समझ पाया
सामंजस्य स्थापित कर पाया
वही अपने हिसाब से
अपने तरीके से जी पाया |
जिसने इसे नहीं समझा
इसका मोल नहीं आंका
इसे भोग नहीं पाया
किसी ने बेवफा कहा इसे कुछ ने मुक्ति मार्ग का नाम दिया
जाने कितनों ने इसे उपकार कहा
प्रभु की अनमोल देन समझा |
वह भी ऐसी
जो जन्म के साथ मिली हो
फिर वह बेवफा कैसे हो
जिसमें वफा ही भरी हो |
संगी साथी सब छूट जाते हैं
कभी स्मृतियों में
खोते जाते है
कभी विस्मृत भी हो जाते हैं |
है जिंदगी ऐसा अनुभव
जो दौनों ही पाते हैं
कुछ याद रखते हैं
कई भूल जाते हैं
Saturday, July 9, 2011
माँ का घर
मैं नहीं जानता अपनी माँ की माँ का नाम
बहुत दिनों बाद जान पाया मैं यह राज
कि जिस घर में हम रहते हैं
वह दरअसल ससुराल है माँ की
जिसे अब वह अपना घर मानती है
फिर माँ का अपना घर कहाँ है
खोजबीन करने पर यह पता चला
कि मामा के जिस घर में
गर्मियों की छुटि्टयों में
करते रहते थे हम धमाचौकड़ी
वही माँ का घर हुआ करता था कभी
जहाँ और लड़कियों की तरह ही वह भी
अपने बचपन में सहज ही खेलती थी कितकित
और गिटि्टयों का खेल
जिस घर में रहते हुए ही
अक्षरों और शब्दों से परिचित हुई थी वह पहले-पहल
वही घर अब उसकी नैहर में
तब्दील हो चुका है अब
अपना जवाब खोजता हुआ मेरा सवाल
उसी मुकाम पर खड़ा था
जहाँ वह पहले था
माँ का घर एक पहेली था मेरे लिए अब भी
जब यह बताया गया कि
हमारा घर और हमारे मामा का घर
दोनो ही माँ का घर है
जबकि हमारा घर माँ की ससुराल
और मामा का घर माँ का नैहर हुआ करता था
लेकिन किसी ने भी क्यों नहीं समझी यह जरूरत
कि कुछ इस तरह के ब्यौरे भी कहीं पर हों
जिनमें दर्ज किये जाय अब तक गायब रह गये
माताओं और माताओं के माताओं के नाम
हमने खंगाला जब कुछ अभिलेखों को
इस सिलसिले में
तो वे भी दकियानूसी नजर आये
हमारे खेतों की खसरा खतौनी
हमारे बाग बगीचे
हमारे घर दुआर
यहाँ तक कि हमारे राशन कार्डों तक पर
हर जगह दर्ज मिला
पिता और उनके पिता और उनके पिता के नाम
इस मसले पर
माँ और उनकी माँ और उनकी माताओं के नाम पर
हर जगह दिखायी पड़ी
एक अजीब तरह की चुप्पी
घूंघट में लगातार अपना चेहरा छुपाये हुए
तमाम संसदों के रिकार्ड पलटने पर उजागर हुआ यह सच
कि माँ के घर के मुददे पर
बहस नहीं हुई कभी कोई संसद में
दिलचस्प बात यह कि
बेमतलब की बातों पर अक्सर हंगामा मचाने वाले सांसदों ने
एक भी दिन संसद में चूं तक नहीं की
इस अहम बात को ले कर
और बुद्विजीवी समझे जाने वाले सांसद
पता नहीं किस भय से चुप्पी साध गये
इस मुद्दे पर
और अपने आज में खोजना शुरू किया जब हमने माँ को
तब भी तकरीबन पहले जैसी दिक्कतें ही पेश आयीं
घर की मिल्कियत का कागज पिता के नाम
बैंकों के पासबुक हमारे या हमारे भाइयों या पिता के नाम
घर के बाहर टंगे हुए नामपट्ट पर भी अंकित दिखे
हम या हमारे पिता ही
हर जगह साधिकार खड़े दिखे
कहीं पर हम
या फिर कहीं पर हमारे भाई
या फिर कहीं पर हमारे पिता ही
जब हमने अपनी तालीमी सनदों पर गौर किया
जब हमने गौर किया अपने पते पर आने वाली चिटि्ठयों
तमाम तरह के निमन्त्रण पत्रों
जैसी हर जगहों पर खड़े दिखायी पड़े
हम या हमारे पिता ही
अब भले ही यह जान कर आपको अटपटा लगे
लेकिन सोलहो आने सही है यह बात कि
मेरे गाँव में नहीं जानता कोई भी मेरी माँ को
पड़ोसी भी नहीं पहचान सकता माँ को
मेरे करीबी दोस्तों तक को नहीं पता
मेरी माँ का नाम
अचरज की बात यह कि
इतना सब तलाश करते हुए भी
जाने अंजाने हम भी बढे जा रहे थे
लगातार उन्हीं राहों पर
जिन्हें बड़ी मेहनत मशक्कत से संवारा था
हमारे पिता
हमारे पिता के पिता
हमारे पिता के पिता के पिताओं ने
एक लम्बे अरसे से
खुद जब मेरी शादी हुई
मेरी पत्नी का उपनाम न जाने कब
और न जाने किस तरह बदल गया मेरे उपनाम में
भनक तक नहीं लग पायी इसकी हमें
और कुछ समय बाद मैं भी
बुलाने लगा पत्नी को
अपने बच्चे की माँ के नाम से
जैसा कि सुनता आया था मैं पिता को
बाद में मेरे बच्चों के नाम में भी धीरे से जुड़ गया
मेरा ही उपनाम
अब कविता की ही कारीगरी देखिए
जो माँ के घर जैसे मुद्दे को
कितनी सफाई से टाल देना चाहती है
कभी पहचान के नाम पर
कभी शादी ब्याह के नाम पर
तो कभी विरासत के नाम पर
और जहाँ तक माँ के घर की बात है
मैं हरेक से पूछता फिर रहा हूँ
अब भी अपना यह सवाल
कोई कुछ बताता नहीं
सारी दिशाएँ चुप हैं
पता नहीं किस सोच में
जब यही सवाल पूछा हमने एक बार माँ से
तो बिना किसी लागलपेट के बताया उसने कि
जहाँ पर भी रहती है वह
वही बस जाता है उसका घर
वहीं बन जाती है उसकी दुनिया
यहाँ भी किसी उधेड़बुन में लगी हुई माँ नहीं
बस हमें वह घोसला दिख रहा था
जिसकी बनावट पर मुग्ध हो रहे थे हम सभी।
मैं नहीं जानता अपनी माँ की माँ का नाम
बहुत दिनों बाद जान पाया मैं यह राज
कि जिस घर में हम रहते हैं
वह दरअसल ससुराल है माँ की
जिसे अब वह अपना घर मानती है
फिर माँ का अपना घर कहाँ है
खोजबीन करने पर यह पता चला
कि मामा के जिस घर में
गर्मियों की छुटि्टयों में
करते रहते थे हम धमाचौकड़ी
वही माँ का घर हुआ करता था कभी
जहाँ और लड़कियों की तरह ही वह भी
अपने बचपन में सहज ही खेलती थी कितकित
और गिटि्टयों का खेल
जिस घर में रहते हुए ही
अक्षरों और शब्दों से परिचित हुई थी वह पहले-पहल
वही घर अब उसकी नैहर में
तब्दील हो चुका है अब
अपना जवाब खोजता हुआ मेरा सवाल
उसी मुकाम पर खड़ा था
जहाँ वह पहले था
माँ का घर एक पहेली था मेरे लिए अब भी
जब यह बताया गया कि
हमारा घर और हमारे मामा का घर
दोनो ही माँ का घर है
जबकि हमारा घर माँ की ससुराल
और मामा का घर माँ का नैहर हुआ करता था
लेकिन किसी ने भी क्यों नहीं समझी यह जरूरत
कि कुछ इस तरह के ब्यौरे भी कहीं पर हों
जिनमें दर्ज किये जाय अब तक गायब रह गये
माताओं और माताओं के माताओं के नाम
हमने खंगाला जब कुछ अभिलेखों को
इस सिलसिले में
तो वे भी दकियानूसी नजर आये
हमारे खेतों की खसरा खतौनी
हमारे बाग बगीचे
हमारे घर दुआर
यहाँ तक कि हमारे राशन कार्डों तक पर
हर जगह दर्ज मिला
पिता और उनके पिता और उनके पिता के नाम
इस मसले पर
माँ और उनकी माँ और उनकी माताओं के नाम पर
हर जगह दिखायी पड़ी
एक अजीब तरह की चुप्पी
घूंघट में लगातार अपना चेहरा छुपाये हुए
तमाम संसदों के रिकार्ड पलटने पर उजागर हुआ यह सच
कि माँ के घर के मुददे पर
बहस नहीं हुई कभी कोई संसद में
दिलचस्प बात यह कि
बेमतलब की बातों पर अक्सर हंगामा मचाने वाले सांसदों ने
एक भी दिन संसद में चूं तक नहीं की
इस अहम बात को ले कर
और बुद्विजीवी समझे जाने वाले सांसद
पता नहीं किस भय से चुप्पी साध गये
इस मुद्दे पर
और अपने आज में खोजना शुरू किया जब हमने माँ को
तब भी तकरीबन पहले जैसी दिक्कतें ही पेश आयीं
घर की मिल्कियत का कागज पिता के नाम
बैंकों के पासबुक हमारे या हमारे भाइयों या पिता के नाम
घर के बाहर टंगे हुए नामपट्ट पर भी अंकित दिखे
हम या हमारे पिता ही
हर जगह साधिकार खड़े दिखे
कहीं पर हम
या फिर कहीं पर हमारे भाई
या फिर कहीं पर हमारे पिता ही
जब हमने अपनी तालीमी सनदों पर गौर किया
जब हमने गौर किया अपने पते पर आने वाली चिटि्ठयों
तमाम तरह के निमन्त्रण पत्रों
जैसी हर जगहों पर खड़े दिखायी पड़े
हम या हमारे पिता ही
अब भले ही यह जान कर आपको अटपटा लगे
लेकिन सोलहो आने सही है यह बात कि
मेरे गाँव में नहीं जानता कोई भी मेरी माँ को
पड़ोसी भी नहीं पहचान सकता माँ को
मेरे करीबी दोस्तों तक को नहीं पता
मेरी माँ का नाम
अचरज की बात यह कि
इतना सब तलाश करते हुए भी
जाने अंजाने हम भी बढे जा रहे थे
लगातार उन्हीं राहों पर
जिन्हें बड़ी मेहनत मशक्कत से संवारा था
हमारे पिता
हमारे पिता के पिता
हमारे पिता के पिता के पिताओं ने
एक लम्बे अरसे से
खुद जब मेरी शादी हुई
मेरी पत्नी का उपनाम न जाने कब
और न जाने किस तरह बदल गया मेरे उपनाम में
भनक तक नहीं लग पायी इसकी हमें
और कुछ समय बाद मैं भी
बुलाने लगा पत्नी को
अपने बच्चे की माँ के नाम से
जैसा कि सुनता आया था मैं पिता को
बाद में मेरे बच्चों के नाम में भी धीरे से जुड़ गया
मेरा ही उपनाम
अब कविता की ही कारीगरी देखिए
जो माँ के घर जैसे मुद्दे को
कितनी सफाई से टाल देना चाहती है
कभी पहचान के नाम पर
कभी शादी ब्याह के नाम पर
तो कभी विरासत के नाम पर
और जहाँ तक माँ के घर की बात है
मैं हरेक से पूछता फिर रहा हूँ
अब भी अपना यह सवाल
कोई कुछ बताता नहीं
सारी दिशाएँ चुप हैं
पता नहीं किस सोच में
जब यही सवाल पूछा हमने एक बार माँ से
तो बिना किसी लागलपेट के बताया उसने कि
जहाँ पर भी रहती है वह
वही बस जाता है उसका घर
वहीं बन जाती है उसकी दुनिया
यहाँ भी किसी उधेड़बुन में लगी हुई माँ नहीं
बस हमें वह घोसला दिख रहा था
जिसकी बनावट पर मुग्ध हो रहे थे हम सभी।
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